Lalita Vimee

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इकदास्तां ,भाग 6

 
रात को पानी की प्यास ने जगाया तो उसे प्रीत  याद आई थी,कहाँ गई प्रीत, इधर ही कहीं होगी।

नशे की अधिकता के कारण  उठना  भी  मुश्किल हो रखा था।
प्रीत ,पानी ही  पिला दो यार एक गिलास।
कोई जवाब नहीं था।
वो बड़ी मुश्किल से उठा था, लड़खड़ाता हुआ, और चारपाई के नीचे रखा पानी पीकर फिर लेट गया था।
आज शायद कुछ ज्यादा ही पी गई, इसलिए प्रीत भी नाराज हो गई।
मैं भी क्या करूँ, चक्रव्यूह में फसता चला जा रहा हूँ।
प्रीत प्रीत माफ कर दे मुझे,प्लीज,अब नहीं पीऊँगा।प्रीत मैं मर जाऊँगा।
  तुम शराब छोड़ क्यों नहीं देते विजय।क्यों पीते हो इतना?
मैं तेरे बिना बिल्कुल निसहाय सा हो  जाता हूँ, इसे पीकर मुझे हिम्मत मिलती है,और मुझे तेरा साथ मिलता है।

ये सब गलत है, मृगमरीचिका है विजय।

पर मेरे लिए यही हकीकत है प्रीत।

ये तुम्हारी हकीकत नहीं है विजय, कल तुम्हारे भाईसाहब रजनी को लेकर आ रहे हैं।वो है तुम्हारी हकीकत , तुम्हारी ब्याहता है वो,कितने सालों से तुम्हारा इंतजार कर रही है।
पर तुम मेरी ज़िंदगी हो प्रीत, तुम्हारे बिना मैं हूँ ही नहीं।

मैं कहाँ हूँ विजय?

तुम मेरी आती  हुई साँसों में हो प्रीत।

कल रजनी आये तो उसे कोई दुख न देना विजय, उसने बेचारी ने तो बिना कसूर भुगता है।

सब ही बिना  कसूर   भुगते हैं प्रीत।तुम्हारा क्या कसूर था।मेरा क्या  कसूर था प्रीत। विजय की आवाज नशे की अधिकता और भावुकता के  चरम के कारण लड़खड़ा गई थी।
तुम सो जाओ विजय अब। तुम्हें नींद की जरूरत है।
मेरी नींद मेरा सकून तो तुम्हारे पास है प्रीत।

मैं तुम्हारे साथ हूँ विजय ,सो जाओ आराम से  सो जाओ।
प्रीत के स्ने हिल स्पर्श को विजय अपने सिर पर महसूस कर रहा था। वह सच मे  ही नींद के आगोश में चला गया था।
       बहुत अजीब से सपने देखते हुए रजनी को भी नींद आ गई थी। सुबह सात बजे सास के जगाने पर ही आँख खुली थी।
रजनी  तैयार हो जा बेटी, जसमीत ने आठ बजे गाड़ी बुला रखी है।
 मैं कुछ काम में मदद कर देती हेँ माँ।

कुछ नहीं करना तुमनें बस तैयार हो जाओ  बेटी।

 मैंने सब्जी बना ली है,  बस अभी तंदूर पर रोटी बना लेती हूँ।

जी माँ।

रजनी तैयार होने लग गई थी। माँ ने कहा था कोई ढ़ंग का सुंदर सा सूट पहन लो बेटी।

कल के सिले सूटों में से ही एक सूट पहन लिया था रजनी ने।छोटा कुरता और भारी सलवार, रजनी की कदकाठी को और निखार रही थी। कच्चे पीले रंग के सूट  में रजनी  माईयों बैठी दुल्हन जैसी लग रही  थी।  रजनी तैयार हो चुकी थी ,तभी उसकी सास ने चाय के लिए आवाज़ दी थी।  जैसे ही वो नीचे आई ,सास ने पहले कान के पीछे काला टीका लगा दिया था।
चाय पी ले बेटी, और इन सूनी आँखों में भी काजल डाल ले। माथे पर बिन्दी भी लगा ले। आजकल की लड़कियाँ कितना सब करती हैंऔर एक तूं  है कि वही सीधी की सीधी। 

पर माँ।

तभी उसकी जेठानी उठ कर आई थी।

रजनी अब की बार देवरजी को अकेला छोड़ कर मायके वायके जाने की जरूरत नहीं है। वहीं जमे रहना ,अपना घर बसाओ।

एक फीकी सी मुस्कान रजनी के होठों पर तैर  गई थी।
अरे रजनी रूको एक  मिनिट, मैं अभी आई।
जेठानी ने अपने पर्स में से बिंदी के पेकिट   में से एक हरे रंग की बिंदी रजनी के माथे पर चिपका दी थी।  दो पैकेट रजनी को दे दिए थे।

बड़ी  बहू इसे काजल भी लगा दे, माँ ने इसरार किया था।
जेठानी ने उससे पूछा था, काजल है तुम्हारे पास?
उसनें   ना  में सिर  हिला दिया था।

 वो मैं जल्दी जल्दी बाजार नहीं जा पाई दीदी। फिर मैं ये सब लगाती भी नहीं।

कोई नहीं रूको तुम, अलमारी में से एक नया मेकअप बाक्स निकाल कर दिया था जेठानी ने।
ये ले लो रजनी, मैने अभी तक तुम्हें शादी का कोई तोहफा भी नहीं दिया था ।ये मेरी तरफ से तुम्हारे लिए।

शुक्रिया दीदी, पर ये तो आप का है।

अब ये तुम्हारा है रजनी।

ले लो इसे और काजल वगैरह लगा लो।

काजल लगाने से  रजनी की उदास आँखें जैसे मुस्करा उठी थी।

माँ जल्दी करो,गाड़ी वाला इंतजार कर रहा है।

आ रहे हैं बेटा।

रजनी ने अपनी सिलाई मशीन का फिर पूछा था।

अरे रखवा दी है बेटा रखवा दी है।

माँ और रजनी पीछे वाली सीट पर बैठ गए थे। गाड़ी में पूरा सामान आ गया था।

कमरे का कैसे किया जसमीत?

माँ जिस कमरे में विजय रहता है, न उसके बगल वाला कमरा बंद पड़ा था। हमने जैसे ही खाली करने.की बात उठाई तो मकान मालिक ने तुरंत कहा,
कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है साहब, मैं ये  कमरा खाली करवा कर साफ करवा देता हूँ, इस के बगल में रसोई भी है। कोई दिक्कत नहीं होगी  आप लोगों  को यहाँ।

पर अभी तक तो विजय स्कूल चला गया होगा।
अरे वो चाबी नीचे दे गया होगा, नीचे के हिस्से में भी परिवार रहता है।

साढे नौं बज चुके थे। जसमीत के बताए रास्ते पर गाड़ी सरकती जा रही थी। दो घंटे का सफर तय करके दस बजे  गाड़ी एक घर के आगे रूकी थी।

 अंदर से एक घूंघट काढ़े महिला बाहर आई थी। पल्लू में बंधी चाबी  जसमीत की तरफ करके हाथ जोड़ दिए थे। माँ को और रजनी को भी राम राम बोला था। 

 वो लाला जी बड़े वाला पलंग रखवा गए हैं, मेरे पास चाबी थी तो मैंने ऊपर ही रखवा दिया था। घर सारा साफ है धुला, पौछा है। आप सामान जमा ले। मैं चाय भेजती हूँ,और खाने का इंतजाम करती हूँ।

 अरे अरे नहीं , खाना हम बना कर लाये हैं।

हम पंडित है चाची, कोई ऐसी वेसी जात नहीं।

इंसान से बड़ी कोई जाति नहीं होती बेटा।तुम पानी का इंतजाम कर दो बेटा।

जी चाची।

रजनी माँ के साथ ऊपर चली गई थी। जसमीत और गाड़ी वाला भाई सामान ऊपर  चढ़ा रहे थे।बड़े खूले खूले कमरे थे।अगल बगल में कमरे,और बगल में रसोई।सामने बड़ा सा आँगन, आँगन के बाये़ं तरफ बाथरूम वगैरह थे।पानी का नल भी ऊपर था। बहुत प्यारा सा घर था। सामान उतार कर जसमीत लाला की दुकान से पंलग के  लिए गद्दे  भी उठा लाया था। तब तक माँ और रजनी ने लगभग सामान जमा लिया था।

नीचे से चाय बना कर भेज दी  गई थी। माँ जसमीत और गाड़ी वाले ने पी ली थी।

रजनी ने बस कोरे घड़े का पानी ही पीया था।उसे पानी में ये मिट्टी की सोंधी महक उसे बहुत अच्छी लगती थी।दो बज गए थे। सीढिय़ों से आहट हुई थी।विजय  आ गया था।
देख अब लगी न घर जैसी बात, इतनी अच्छी नौकरी, इतनी अच्छी तन्ख्वाह, फिर भी घुमंतू लोगों की तरह रह रहा था।
रोटी बाहर से ले आता हूँ भाई,यहाँ ढाबे पर अच्छा खाना मिलता है, घर जैसा।

ना बेटा, खाना घर से तैयार कर के लाई हूँ।अभी सब्जी गर्म कर देती है बहू, सभी खालो।

रजनी ने खाना लगा दिया था।  सभी ने खाना खाया था,नीचे से आई लस्सी ने खाने का स्वाद और बढ़ा दिया था।एक घंटा.आराम करने के बाद माँ ने विजय को कहा था।

हम निकल जायें बेटा,वापसी की गाड़ी की हुई है, कल परसों  में जसमीत ने भी जाना है। तुम दोनों सप्ताह दस दिन में घर आते रहना।

विजय चुप रहा था।

जसमीत ने थोड़ा सा ऊचे स्वर में कहा था, भाई कोई दिक्कत हो तो अभी बता देना। मेरे जाने के बाद कोई तमाशा खड़ा न हो। 

जी।

रजनी बहू चाय बना ले, मैं.ड्राइवर को भी दे आता हूँ। फिर निकल लेंगे।

रजनी चाय बना कर ले आई थी।

इस को दवा वगैरह समय से देना रजनी, और कोई भी किसी तरहं की दिक्कत हो मुझे चिठ्ठी लिख देना। तूं मेरे लिए बेटी जैसी है, बहुत छोटी बहन जैसी। जसमीत की आँखें भर आई थी।

माँ ने भी भीगी आँखों को  पल्लु से पोंछ लिया था।
रजनी ने भीगी पलकें झुका कर जसमीत की तरफ हाथ जोड़ दिए थे।

चाय पी ले ठंडी हो जायेगी भाई, विजय ने जैसे इस टापिक से बचना चाहा था।
जसमीत ने अपना पता लिखे दस लिफाफे और दो पैन रजनी को दिए थे।

ठीक है  बेटी चलूं मैं?

 माँ तुम भी इधर आती रहना, वहाँ भी तो अकेली ही हो। जसमीत ने कहा था।

ठीक है विजय मेरी रजनी बेटी का ध्यान रखना। भीगी आँखों से  सीढियां उतर गया था जसमीत।
रजनी भी माँ के साथ नीचे तक गई थी।विजय भी गया था। माँ ने नीचे  रहने वाली  महिला को भी कहा था," मेरी बहू का ध्यान रखना बेटी, पहली बार घर से अलग रहेगी"।

आप चिंता न करे चाची। छोटी बहन जैसी है मेरी।

गाड़ी चल पड़ीथी। दूर तक हाथ हिलते दिखते रहे थे पर जब औझल हो गए तो रजनी को लगा कि वो बहुत अकेली हो गई है। उसकी  सूनी आँखों में और खालीपन भर गया था। वो पीछे पलट कर वापिस सीढियां चढ़ गई थी। विजय भी.उसके पीछे आ गया था।
            अपने खाली पन को भरने के लिए वो खाली प्याले उठाने लग गई।विजय निशब्द था। वो रसोई में बरतन साफ कर र ही थी। वो चुपचाप अपने पुराने पंलग पर ही लेट गया था। शाम के छह बजने वाले थे। रजनी रसोई से सटे कमरे यानि बीच वाले कमरे में  पंलग पर बैठी थी।उसे कोई बात नहीं सूझ रही थी और विजय निशब्द था ही।बीच वाले कमरे के    बीच   में दो दरवाजे थे,एक रसोई में खुलता था और एक विजय के कमरे  में।  उपर के सभी कमरों और रसोई के दरवाजे आँगन में भी खुलते थे। रजनी बैठी कुछ सोच र ही थी कि एक बंदर आँगन से आकर उसकी बगल म़े खड़ा  हो गया। मारे डर के रजनी चिल्ला पड़ी थी।उसने बंदर को इतने करीब कभी नहीं देखा था।
विजय उठकर उधर गया तो उसने बंदर को भगा दिया था। दरवाजे को बंद कर दिया था उसनें, और आँगन से सटी खिड़की खोल दी थी।
ये काटते तो नहीं हैं, बस.खाने की चीज और कपड़े वगैरह उठा कर भाग जाते  हैं, फिर रोटी देने पर ही वो सामान छोड़ते हैं। आप दरवाजा बंद रखा करें।

जी, आईन्दा ध्यान रखूंगी। रात को क्या बनाऊँ?

आप अपने लिए बना ले,मैं तो रात को सिर्फ दूध ही पीता हूँ।
आप बता दें मैं सब्जी वगैरह ला देता हूँ।
भाई साहब काफी सब्जियाँ ला कर रख गए हैं और दिन की  सब्जी भी बची रखी है रोटी भी है। मैं अभी कुछ नहीं बनाऊँगी। आप सुबह कितने बजे जाते हैं स्कूल?

मैं सात बजे निकल जाता हूँ।

तभी दूध वाले ने आवाज दी थी।  विजय ने दूध  ज्यादा लिया था,और सुबह भी लाने को बोल दिया था। उसने दूध लाकर रजनी को देदिया था और  नीचे चला गया था,बिना कुछ बताये। ।

 कुछेक मिनिट बाद वो नीचे  रहने वाली  महिला उपर आई थी।

उन्होंने रजनी को अपना नाम सरला बताया था। उनकी एक बेटी और एक बेटा हैं।वो लोग यूपी से थे और पति यहाँ मलेरिया विभाग में नौकरी करते थे। जब भी कोई काम हो आवाज दे देना। उन्होंने खाने के  लिए भी पूछा था पर रजनी ने विनम्रता से इंकार कर दिया था।
            वो नीचे आ गई थी। रजनी ने  दीया और लैम्प हिफाज़त से रख लिए थे।सरला दीदी बता रही थी कि क ई बार लाईट चली जाती है,और काफी देर तक नहीं आती। बंदर  डंडा दिखाने से भाग जाते हैं ये कहकर वो रजनी को एक डंडा भी दे गई थी। एक घंटा हो गया था विजय को गए, पर अभी तक नहीं आया था। लाईट चली गई थी। रजनी ने दीया जला कर स्टूल पर रख दिया था। 

       सीढियों  से किसी के.आने की आहट हुई थी। विजय ही था।वो आकर उसी अपने पहले वाले कमरे में ही बैठ गया था। रजनी ने आकर पानी पूछा तो उसने कहा था," मेरा दूध और एक जग पानी  यहीं रख देना, आप उधर सो जाना।दरवाजे सब बंद कर लेना, बाकि कोई डर की बात नहीं है।

एक धक्का सा लगा था रजनी को, पर वो भी जानती थी कि जिस राह पर वो चली है, वो  उतनी आसान नहीं है। उसने गर्म दूध और पानी का जग  विजय को दे दिया था।दीये के लिए पूछने पर उसने मना कर दिया था।जरूरत नहीं है मैं सोऊँगा अभी, कहते हुए विजय ने बीच का दरवाजा बंद कर लिया था जो रजनी के कमरे की तरफ खुलता था। ये कैसा स्वागत किया था, उसके पति  ने उसका। एक फीकी सी मुस्कान होठों पर तैर गई थी।

     विजय को दूध देने के बाद जो बचा था रजनी ने उस की दही जमा दी थी । बैड पर लेट गई थी, माचिस करीब रख कर दीया बुझा दिया था। चंद मिनिट बाद ही पंखा चल पड़ा था। यानि की लाईट आ गई थी। विजय ने अपने कमरे का आँगन वाला दरवाजा खोल दिया था। पता नहीं क्यों उसे लगा था कि जब विजय बाहर से आया तो उस.का अंदाज कुछ बदला हुआ था। क्या बदलाव था, नहीं समझ पाई थी। धीरे धीरे नींद ने उसकीं आँखों पर अपना बसेरा डाल लिया था।
                  पहले की शराब ने कोई असर नहीं दिखाया था,साथ में लाई बोतल से भी दो  पैग पी चुका था।पर प्रीत का कहीं अहसास भी नहीं था। पागलपन की हद इतनी बढ़ गई थी कि वो सारी बोतल खत्म कर चुका  था।
प्रीत कहाँ हो तुम ? लड़खड़ाई जुबान और  शिथिल दिमाग  को पता नहीं क्यों प्रीत की उम्मीद थी। उसे खुद भी पता नहीं चला कब वो बेसुध सा नींद के आगोश में या बेहोशी के आगोश  में समा गया  था।
काफी रात बीत गई थी, थोड़ी ही बकाया थी बिल्ली आँगन के खुले दरवाजे से अंदर आ गई थी। उसने  बेसुध  से विजय को देखा था।कुछ देर वहीं खड़ी रही,फिर उसने दूध का लोटा गिराया और दूध पीने लगी।डरी डरी सी वो दूध पीते पीते भी इधर उधर और विजय को देख रहा थी। दूध पीकर  वो कुछ क्षण रूकी, उसने विजय को देखा और वो निकल गई। 
घड़ी ने पाँच बजाये थे।रजनी की भी आँख खुल गई थी।उसे सुबह इसी वक्त. उठने की आदत थी। नित्य कर्मो से निवृत्त होकर उसने साफ रसोई को और साफ किया था। थोड़ा आटा लगाया था। दही जम गई थी, उसमें से थोड़ी दही की लस्सी बना दी थी। पौना घंटा है गया था विजय अभी उठा ही नहीं था। कहीं इन्हें देर  न हो जाये। पर कैसे जगाऊँ, महाराज ने तो रात को बीच का दरवाजा ही बंद कर लिया था।
      उसे याद आया कि विजय को तो सुबह उठते ही चाय पीने की आदत.है।चल रजनी कोई बात नहीं इतना सहा है तो थोड़ा और सही। उसने चाय बनाई और वो खुले दरवाजे की तरफ बढ़  गई थी। कमरे में विजय के पास रखा सामान और शराब की खाली बोतल देखकर उस को स्थिति का भान हो गया था।
    उसने डरते डरते विजय को हाथ से हिलाया थ।
आप उठें वरना स्कूल में देर  हो जायेगी।  
तूं मुझे छोड़ कर मत जा प्रीत, विजय ने रजनी का हाथ पकड़ लिया था।
मैं प्रीत नहीं रजनी हूँ विजय जी। आप उठें मैंने चाय बन कर रख दी है आपके पास।

हाथ छूट गया था या छोड़ दिया था विजय ने।रजनी कभी खुद को  छूटने का दिलास देती तो कभी छोड़ने ,और  प्रीत पर आँसू बहाने को जी चाहता। ना रोई न आँसू टपके,पर एक शिला सी कलेजे  पर धरी गई। लगभग बीस मिनिट  बाद विजय ने बीच वाला दरवाजा खोला  था।
वो मेरे कपड़े आपने शायद उठा कर इधर रख दिए हैं।
आपके आज पहनने के कपड़े  प्रेस कर दिए हैं मैने। ये रखे, नहा लीजिए।

विजय चुपचाप कपड़े उठा कर ले गया था। नहाकर तैयार हो रहा था, रजनी ने आकर पूछा, नाश्ते में क्या लेंंगें, लस्सी या चाय।
 मैं नाश्ता करता ही नहीं, दोपहर में वहीं स्कूल में ही मंगवा लेता हूँ।

पर अब से आप को अपने नियम बदलने होंगे,
 सुबह चाहे  आधी रोटी खा कर जायें खानी होगी, और दोपहर में घर आकर खाना होगा। या फिर टिफिन ले जाया करें।
आज मेरी तबियत ठीक नहीं है,इस लिए आज तो नहीं खा  पाऊँगा कुछ भी। वैसे ही सिरदर्द है। 
ठीक है आप तैयार  हो जायें, मैं कुछ देखती हूँ।
रहने दें मुझे कुछ नहीं चाहिए।
आप तैयार हो जायें, इकठ्ठा रहना है तो  एक दूसरे की बातें भी माननी होंगी।
विजय निशब्द था
 रजनी एक कप में कुछ बना लाई थी। ये लीजिए आप बहुत ठीक महसूस करेंगें।

मैं ठीक हूँ।

 पीकर देखें आप रोज बनवायेंगे।

अनमने मन से विजय ने वो कप ले लिया था ,और पीने लगा था।पीने में अच्छा लगा था। खाली कप एक तरफ रख कर वो  जूते पहनने लगा तो रजनी ने पूछा था।

आपने बताया न हीं कैसा लगा ये जो मैने बनाया है।
अच्छा था।

आपने ये भी नहीं पूछा कि ये क्या था?

प्रश्न वाचक निगाहें रजनी की तरफ उठ गई थी।

रहने दीजिए आप को शायद मेरे साथ बातें करना पंसद नहीं। खैर दोपहर का खाना घर पर खाना।

 जी,और वह.बाहर निकल गया था।

 उस के बर्ताव से बहुत   टूट गई थी रजनी,पर कोई इलाज नहीं था। प्रीत कौन है ?अगर कोई लड़की इन के जीवन में है तो ये उस के साथ ही क्यों नहीं रहते। प्रीत प्रीत उस के कानों में जैसे इस नाम के धमाके  हो रहे थे।

तभी सरला दीदी ने आवाज़ दी थी।

रजनी दूध ले लो नीचे आकर।

आई दीदी।

अरे पहले तो ये ऊपर ही दे आता था, आज विजय भैया बोल कर गए कि भाभी दूध वाला आये तो उपर आवाज़ लगा देना, वो जानती न हीं है अभी।

जी दीदी।

वो दूध लेकर उपर आ आ गई थी, दोनों कमरो को साफ करके नहाई थी। पूजा करके अपने लिए चाय बनाई थी। चाय पीते पीते उसे कम्मो याद आई थी।आज कम्मो को चिठ्ठी लिखूँगी। पहले सब्जी बना लेती हूँ। फिर सोच, अभी सब्जी नहीं बनाती, विजय तो एक बजे के बाद ही आयेंगे।कुछ देर पहले ही बना दूंगी।कम्मो को चिठ्ठी लिख कर कपड़े धो लिए थे।फिर वहीं खाली, अब क्या करूं?
अपनी  सिलाई मशीन याद आ  गई, उसे ही खोल कर देखती हूँ, सास माँँ ने जो सूट दिलाये थे उन्हें काटती हूँ और सिलती हूँ। 
मशीन का बाक्स  खोला तो अलग तरहं के रगों की धागा रील का एक पैकिट था। इंचीटेप और कैची  और कपड़ों के चाक भी अलग से थे।

मशीन की पैकिंग में इतना सब ? शायद मैडम जी ने ही करवाया है ये अलग से। कितनी अच्छी  हैं न मैडम जी, मन ही मन उन का शुक्रिया अदा किया था। वो अपना सूट काट ही रही थी कि सरला दीदी ऊपर आई थी।

अरे वाह रजनी , कपड़े भी सिलने आते हैं तुम्हें?

जी दीदी सिल लेती हूँ।

ब्लाऊज वगैरह भी सिल लेती हो?

जी दीदी, सब सिल लेती हूँ। आप दीजिए कपड़ा, आपका ब्लाउज बना दूंगी।

अरे मुझे तो ब्लाऊज़ बनवाने शहर  जाना था। मैं तुम्हारे भाई साहब से बोल रही हूँ , दो दिन से।

आप लाकर दीजिए कपड़ा, पहले आप ही का ब्लाउज बना देती हूँ। मैं सूट  कल सिल लूंगी।

एक दिन में बनजायेगा?

आप कपड़ा तो लाईए,

सरला ने उसे कपड़ा लाकर दिया था।रजनी ने उस  का नाप लेकर ,ब्लाऊज काट कर सिल दिया था। उसने सरला को आवाज दी थी, .दीदी जरा पहन कर देखो तो फिटिंग देख कर ही तुरपाई कर दूंगी।
ब्लाऊज पहन कर तो सरला जैसे उसकी मुरीद हो गई थी।
क्या जादू है री तुम्हारे हाथों में।

ऐसा कुछ नहीं है दीदी, लाओ बदल लो ब्लाऊज फिर शाम.को दूंगी आपको तुरपाई करके।

तुम बहुत अच्छी हो रजनी।

अरे दीदी मैं भीअब खाना बनानेकी तैयारी कर लेती हूँ बारह बज गए ये आने वाले ही होंगे।

रजनी ने फटाफट सब्जी बना ली थी।आटा लगा कर उसनेचटनी भी बना दी थी।  अपने बाल सवांरकर आँखों में काजल भी लगाया था।

इंतजार लंबा हो गया था।दो बज गए थे पर विजय नहीं आया था। रजनी ने अपना सूट उठा  लिया था,और सिलना शुरू कर दिया था। लगभग तीन बजे सीढियों में पदचाप हुई थी।रजनी दूसरे कमरे में देखने गई तो विजय ही था। वो वापिस अंदर चली गई थी ।घड़े से पानी का गिलास भरा था। मुड़ कर देखा तो विजय उसी कमरे मे  उसी पंलग पर ही बैठ गया था निशब्द।

 उसने पानी देकर  खाने के लिए पूछा था। 

     बना दो।

रजनी ने फटाफट फुलके बना दिए थे सब्जी गर्म कर के खाना लगा दिया था। विजय ने कपड़े बदल कर  खाना खाया था।खाना खाकर वो उसी कमरे में लेट गया था।

आप तो एक बजे आने का बोल रहे थे,बहुत देर से आये।

कुछ काम हो गया था स्कूल में ही। इसलिए देर हो गई।
कुछेक देर वो वहीं खड़ी रही पर उसे लगा कि वो खामोशी  और विजय के बीच व्यर्थ ही  दिवार बनी हुई  है। वो चुपचाप वापिस दूसरे कमरे में चली गई थी। विजय के व्यवहार को देखकर रोटी खाने का मन तो नहीं था,पर पेट की आग का भी तो अपना असर होता है।कल दोपहर में रोटी खाई थी।
 चुपचाप अपने लिए रोटी सेक कर खा ली थी उसने।   बर्तन साफ करके दरवाजे बंद कर लिए थे। सामने से बहुत तेज धूप   की तपन,
आ रही थी.रजनी ने खिड़की दरवाजे बंद कर दिए थे। पंखा चलाकर लेट गई थी। विजय तो शायद सो  ही गया था। गर्मी की दोपहरी भी कितनी लंबी हो जाती है। सही कहा है किसीने   दर्द और परेशानी का समय काटे नहीं कटता। पता नहीं कितनी परीक्षाएं और देनी होगी। एक मन तो कर रहा था उठ कर ब्लाऊज तैयार कर दूं दीदी का ,थोड़ा ही .काम बचा है।पर फिर उसे प्रीत याद आ गई थी। बहुत बेचैनी सी हो गई थी। फिर खुद कोही दिलासा  दिया था सब चीजें जल्द ठीक  हो जायेंगी। पता नहीं कब नींद आ गई थी।  पाँच बजे के करीब आँख खुली थी, विजय सो  ही रहा थाः बीच का दरवाजा भी आज उसने बंद नहीं किया था। उठ कर हाथ मुँह धोकर अपने लिए चाय बनाई  और दीदी का ब्लाऊज तुरपने लग गई थी।ब्लाऊज तुरप कर सूट  सिलने बैठ गई  थी।
  छह बजे के करीब उस कमरे में हल्की सी आहट से रजनी को विजय के उठने का भान हुआ था , तुरंत चाय और पानी लेकर चली गई थी।
उठ ग ए ,चाय पी लीजिए।
रख दो कहकर विजय बाहर चला गया था।शायद बाथरूम ही गया होगा। 
रजनी भी दूसरे कमरे में चली गई थी। विजय चाय पीकर बाहर जाने को था तो  उसने खाने को पूछा था।
मैंने बताया था न की मैं रात को नहीं खाता, तुम अपना बना लेना। बस दूध गर्म कर देना।

कब तक आयेंगे?

घंटे आधे घंटे में आ जाऊँगा, दूध वो नीचे भाभी को दे  जायेगा।
बिना कुछ बोले रजनी पलट गई  थी।

एक क्षण  को रूका था विजय, फिर  सीढ़ियाँ उतर गया था।
अनमनी सी रजनी पंलग पर पसर गई थी।

कहानी,(इक दास्तां)
लेखिका, ललिता विम्मी
भिवानी (हरियाणा)
   

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12 Comments

Punam verma

04-Jul-2022 12:22 AM

Nice

Reply

Abhinav ji

29-Jun-2022 07:34 AM

Very nice👍

Reply

Mahendra Bhatt

02-Jan-2022 11:57 AM

आगे के बगग कब आएगी इस कहानी के माम

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